सूर्य के प्रकाश में सात रंग क्यों होते हैं ?
सूर्य ☀ के प्रकाश में सात रंग होते हैं यह लगभग हर शक्स जानता ही होगा। पर यह क्यों होता है यह बहुत कम लोग ही जानते होंगे। इस सवाल का जवाब जानने से पहले हमें एक और महत्वपूर्ण सवाल देखना अतिआवश्यक है और वो है सूर्य के प्रकाश के रंग का विशेष क्रम में होना - लाल (Red) , नारंगी(Orange, पीला(yellow) हरा(Green), आसमानी (Sky), नीला (Blue) तथा बैगनी( Violet)
आखिर इसी क्रम में ही क्यों होते हैं ये सभी रंग ? इससे पहले हम पहले सवाल का जवाब /उत्तर देख लेते हैं।
सूर्य के प्रकाश में सात रंग क्यों होते हैं ?
सूर्य के प्रकाश में सात रंग नहीं बल्कि विभिन्न प्रकार के रंग होते हैं और यह इतनी तिव्रता से बदलते हैं कि हमारी आँखेें इन सभी रंगों को देखने में सक्षम नहीं होती है और देख नहीं पाती है । हमारी आँखें केवल उन्हीं सात रंगों ( लाल, नारंगी, पीला, हरा, आसमानी, नीला और बैगनी ) को देख पाती है जो परिणामी रुपसे स्थिर होते हैं और आँख की क्षमता के अनुरूप होते हैं । इस तरह हम कहते हैं कि सूूर्य के प्रकाश में सात रंग ही होते हैं। इस घटना को यह कहावत पुरी तरह से सूट करती है " जो होता है वह दिखता नहीं और जो दिखता है वह होता नहीं है "
तरंग की चाल और आवृत्ति के अनुपात को तरंगदैर्ध्य कहते हैं।
सूत्र v = n × λ
जहाँ v = तरंग की चाल
n = तरंग की आवृत्ति तथा
λ = तरंग की तरंगदैर्ध्य
λ = v / n
इस सूत्र ( λ = v / n ) से स्पष्ट है कि n = ( आवृत्ति ) का मान जितना अधिक होगा उतना ही तरंगदैर्ध्य( λ) का मान भी कम होगा। इसको अच्छे से समझने के लिए आवृत्ति की परिभाषा हमें जानना होगा।
आवृत्ति(Frequency) : दोलन करने वाली कोई वस्तु 1 सेेेकेंड में जितने दोलन करती है वह संख्या उस वस्तु की आवृत्ति कहलाती है।
उदाहरण 🔎आवृत्ति को साधारण शब्दों में समझे तो मान लिजिए कोई पंखा जिसके ब्लेड या पत्तियाँ पंखे के रूकेे रहने पर स्पष्टरूप से दिखाई देती हैं और इसकी आवृत्ति शूून्य होती है । पर जैसे-जैसे पंखा चलने लगता हैै तो इसकी आवृृत्ति बढ़ने लगती है और पत्तियाँ धूँधली दिखाई पड़ने लगती है। पंखे की गति जितनी तेज होगी पंखे आवृत्ति बढ़ती है और की पत्तियों का दिखाई देना उतना ही कम होता जायेगा। ठीक इसी तरह जिस प्रकाशीय तरंगों की आवृत्ति जितना अधिक होगी वह उतना ही धुँधला या कम दिखाई देगा।
पानी में उत्पन्न विक्षोभ (हलचल) : जब पानी
के ऊपर कोई वस्तु फेंकी जाती है तो पानी के ऊपर एक विक्षोभ या हलचल उत्पन्न होती है जो वृत्ताकार रुपमे 360° का कोण बनाते हुए चारों ओर समान रूप से फैलता जाता है। इस विक्षोभ रूपी तरंग और प्रकाशीय तरंग में यह समानता है कि इन दोनों के बाहरी विक्षोभ की तरंगदैर्ध्य बड़ी होती हैं और आसानी से देखा जा सकता और इसका कारण है आवृत्ति।
हम जानते हैं कि प्रकाशीय रंगों की आवृृत्ति के बढ़़ते हुए क्रमशः लाल , नारंगी, पीला, हरा, आसमानी, नीला, आसामानी, बैगनी है ।
इसका मतलब साफ है कि सबसे स्पष्ट और सबसे ज्यादा लाल और सबसे कम स्पष्ट बैगनी दिखाई देगा। इसी वजह से आग में लाल व पीला रंग ज्यादा दिखाई देता है।
आग का रंग ?
आग 🔥 का रंंग लालीमा लिए हुए पीला ज्यादातर होता है। जिसमें लाल रंग सबसे बाहरी तरफ और पीला रंग लगभग बीच या अन्दर होता है। ऐसा क्यों होता है ? क्यों न लाल प्रकाश अन्दर और पीला बाहर होता। इन सभी उदाहरणों से यही स्पष्ट हो रहा है कि लाल सबसे कम ऊष्मा और श्वेत सबसे अधिक ऊष्मा का प्रतिक हैं और इसीलिए ये सभी इसी क्रम में ( लाल, नारंंगी , पीला, हरा, आसमानी, नीला और बैगनी ) होते हैं।
प्रकाश की ऊष्मीय ऊर्जा समान रूप से 360° डिग्री का कोण बनाते हुए हर संभव दिशााओं में संचरित होती है। इस प्रकार प्रकाशीय रंगों का का एक वृत्त बन जाता है जिसके सबसे बाहरी भाग में लाल रंग और सबसे आन्तरिक भाग में बैगनी होता है।
पर यह इतने पास - पास होतें हैं कि आँखें इनमें अन्तर नहीं कर पाती हैं पर जैसे ही ये प्रकाश किसी विचलन भरेे माध्यम से होकर गुजरतेे हैं तो इनके बीच की दूरी बढ़ जाती है और इनकी ऊष्मीय ऊर्जा में कमी भी हो जाती है। इसलिए हमें ये सातों रंग आसानी से दिखने लगते हैं।
यही कारण है कि ये सभी सातों प्रकाशीय रंग लाल, नारंगी, पीला, हरा, आसमानी, नीला और बैगनी को इस क्रम में रखा या लिखा जाता है।
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आखिर इसी क्रम में ही क्यों होते हैं ये सभी रंग ? इससे पहले हम पहले सवाल का जवाब /उत्तर देख लेते हैं।
सूर्य के प्रकाश में सात रंग क्यों होते हैं ?
सूर्य के प्रकाश में सात रंग नहीं बल्कि विभिन्न प्रकार के रंग होते हैं और यह इतनी तिव्रता से बदलते हैं कि हमारी आँखेें इन सभी रंगों को देखने में सक्षम नहीं होती है और देख नहीं पाती है । हमारी आँखें केवल उन्हीं सात रंगों ( लाल, नारंगी, पीला, हरा, आसमानी, नीला और बैगनी ) को देख पाती है जो परिणामी रुपसे स्थिर होते हैं और आँख की क्षमता के अनुरूप होते हैं । इस तरह हम कहते हैं कि सूूर्य के प्रकाश में सात रंग ही होते हैं। इस घटना को यह कहावत पुरी तरह से सूट करती है " जो होता है वह दिखता नहीं और जो दिखता है वह होता नहीं है "
सूर्य के प्रकाशीय रंग विशेष क्रम में क्यों ?
सूर्य के प्रकाश के सात रंग लाल, नारंगी, पीला, हरा, आसमानी, नीला और बैगनी इसी क्रम में ही क्यों होते हैं ? यह सवाल बहुत ही महत्वपूर्ण है।
दरअसल प्रकाश के रंग और ऊष्मा दोनों में गहरा संबंध होता है। प्रकाश की जननी ( माँ ) ऊष्मा है क्योंकि बिना ऊष्मा के कोई भी प्रकाश उत्पन्न नहीं होता। इसलिए जैसी ऊष्मा वैसा रंग ( प्रकाशीय रंग ) होता है। इन सातों प्रकाशीय रंगों में सबसे कम ऊष्मा लाल रंग की और सबसे ज्यादा ऊष्मा बैगनी रंग की होती है। जब सूर्य से ऊष्मा निकलती तो यह प्रकाशीय रंगों के रूप में एक स्थान से दूसरे स्थान तक संचरित होती है। यहाँ पर एक सवाल उठ सकता है कि ऊष्मा प्रकाशीय रंगों के रूप में संचरित होती है तो हमें इसकी जानकारी कितााबों में पढ़ने को क्यों नहीं मिलती है ?
चलिए मान लते हैं कि यह सही है। तो इसका उदाहरण दो जो यह सिद्ध कर सके कि हाँ यह जानकारी सही है। अगर आप ऐसा सोच 💭 रहे हैं तो यह आपकी सार्थक और सही👌 सोंच है। चलिए उदाहरण देखते हैं 🔎
उदाहरण ( Example)
प्रकाश का विभिन्न माध्यमों में गमन : जब प्रकाश केे मार्ग में कोई रंगहीन या पारदर्शी वस्तु होती है तो प्रकाश ना परावर्तित होता के और ना ही अवशोषित ( होता है पर लगभग नगण्य होता है इसीलिए इसे गणना में शामिल नहीं किया जाता है ) । चुँकि कोई भी रंग वस्तु में नहीं होता है तो वस्तु द्वारा प्रकाशीय रंगों को परावर्तित नहीं हो पाता है और प्रकाश पुरी तरह से आरपार हो जाता है। इस तरह की वस्तुओं को पारदर्शी वस्तुएँ कहते हैं। जैसे : काँच, शुुद्ध जल इत्यादि। अगर उसी वस्तु ( जैसे - काँच ) को किसी (लाल) रंग से रंग दिया जाये तो वही वस्तु(काँच) पारदर्शी नहीं रह जायेगी क्योंकि जिस (लाल) रंग से वस्तु ( जैसे - काँच ) को रंगेंगे तो वह (लाल) रंग लाल प्रकाशीय रंग को परावर्तित कर देगा ( और बाकी प्रकाशीय रंग नारंगी, पीला, हरा, आसमानी, नीला, और बैगनी आरपार हो जातेे हैं ) और वही (लाल) प्रकाशीय रंग हमारी आँखों में पड़ता है तो उसी(लाल) रंग की वस्तु हमें दिखाई देगी ।
लोहे को गर्म करना : जब किसी लोहे को गर्म किया जाता है तो लोहा पहले लाल फिर गाढ़ा लाल फिर पीला और अन्त में श्वेत दिखाई देता है। यहाँ पर सोचने वाली बात यह है कि बाकि चार प्रकाशीय रंग ( नारंगी, हरा, आसमानी और नीला ) लोहे को गर्म करने पर क्यों नहीं दिखाई दिए ?
दरअसल जिन - जिन प्रकाशीय तरंगों का तरंगदैर्ध्य बड़ी होती है वो ही रंग आसानी से दिखाई देते हैं। अब ये तरंगदैर्ध्य क्या है ?
तरंगदैर्ध्य ( Wave length ) : माध्यम के किसी कण को एक कम्पन करने में लगे समय के दौरान तरंग द्वारा चली गई दुरी को तरंगदैर्ध्य कहते हैं।
या
चलिए मान लते हैं कि यह सही है। तो इसका उदाहरण दो जो यह सिद्ध कर सके कि हाँ यह जानकारी सही है। अगर आप ऐसा सोच 💭 रहे हैं तो यह आपकी सार्थक और सही👌 सोंच है। चलिए उदाहरण देखते हैं 🔎
उदाहरण ( Example)
प्रकाश का विभिन्न माध्यमों में गमन : जब प्रकाश केे मार्ग में कोई रंगहीन या पारदर्शी वस्तु होती है तो प्रकाश ना परावर्तित होता के और ना ही अवशोषित ( होता है पर लगभग नगण्य होता है इसीलिए इसे गणना में शामिल नहीं किया जाता है ) । चुँकि कोई भी रंग वस्तु में नहीं होता है तो वस्तु द्वारा प्रकाशीय रंगों को परावर्तित नहीं हो पाता है और प्रकाश पुरी तरह से आरपार हो जाता है। इस तरह की वस्तुओं को पारदर्शी वस्तुएँ कहते हैं। जैसे : काँच, शुुद्ध जल इत्यादि। अगर उसी वस्तु ( जैसे - काँच ) को किसी (लाल) रंग से रंग दिया जाये तो वही वस्तु(काँच) पारदर्शी नहीं रह जायेगी क्योंकि जिस (लाल) रंग से वस्तु ( जैसे - काँच ) को रंगेंगे तो वह (लाल) रंग लाल प्रकाशीय रंग को परावर्तित कर देगा ( और बाकी प्रकाशीय रंग नारंगी, पीला, हरा, आसमानी, नीला, और बैगनी आरपार हो जातेे हैं ) और वही (लाल) प्रकाशीय रंग हमारी आँखों में पड़ता है तो उसी(लाल) रंग की वस्तु हमें दिखाई देगी ।
लोहे को गर्म करना : जब किसी लोहे को गर्म किया जाता है तो लोहा पहले लाल फिर गाढ़ा लाल फिर पीला और अन्त में श्वेत दिखाई देता है। यहाँ पर सोचने वाली बात यह है कि बाकि चार प्रकाशीय रंग ( नारंगी, हरा, आसमानी और नीला ) लोहे को गर्म करने पर क्यों नहीं दिखाई दिए ?
दरअसल जिन - जिन प्रकाशीय तरंगों का तरंगदैर्ध्य बड़ी होती है वो ही रंग आसानी से दिखाई देते हैं। अब ये तरंगदैर्ध्य क्या है ?
तरंगदैर्ध्य ( Wave length ) : माध्यम के किसी कण को एक कम्पन करने में लगे समय के दौरान तरंग द्वारा चली गई दुरी को तरंगदैर्ध्य कहते हैं।
या
तरंग की चाल और आवृत्ति के अनुपात को तरंगदैर्ध्य कहते हैं।
सूत्र v = n × λ
जहाँ v = तरंग की चाल
n = तरंग की आवृत्ति तथा
λ = तरंग की तरंगदैर्ध्य
λ = v / n
इस सूत्र ( λ = v / n ) से स्पष्ट है कि n = ( आवृत्ति ) का मान जितना अधिक होगा उतना ही तरंगदैर्ध्य( λ) का मान भी कम होगा। इसको अच्छे से समझने के लिए आवृत्ति की परिभाषा हमें जानना होगा।
आवृत्ति(Frequency) : दोलन करने वाली कोई वस्तु 1 सेेेकेंड में जितने दोलन करती है वह संख्या उस वस्तु की आवृत्ति कहलाती है।
उदाहरण 🔎आवृत्ति को साधारण शब्दों में समझे तो मान लिजिए कोई पंखा जिसके ब्लेड या पत्तियाँ पंखे के रूकेे रहने पर स्पष्टरूप से दिखाई देती हैं और इसकी आवृत्ति शूून्य होती है । पर जैसे-जैसे पंखा चलने लगता हैै तो इसकी आवृृत्ति बढ़ने लगती है और पत्तियाँ धूँधली दिखाई पड़ने लगती है। पंखे की गति जितनी तेज होगी पंखे आवृत्ति बढ़ती है और की पत्तियों का दिखाई देना उतना ही कम होता जायेगा। ठीक इसी तरह जिस प्रकाशीय तरंगों की आवृत्ति जितना अधिक होगी वह उतना ही धुँधला या कम दिखाई देगा।
पानी में उत्पन्न विक्षोभ (हलचल) : जब पानी
के ऊपर कोई वस्तु फेंकी जाती है तो पानी के ऊपर एक विक्षोभ या हलचल उत्पन्न होती है जो वृत्ताकार रुपमे 360° का कोण बनाते हुए चारों ओर समान रूप से फैलता जाता है। इस विक्षोभ रूपी तरंग और प्रकाशीय तरंग में यह समानता है कि इन दोनों के बाहरी विक्षोभ की तरंगदैर्ध्य बड़ी होती हैं और आसानी से देखा जा सकता और इसका कारण है आवृत्ति।
हम जानते हैं कि प्रकाशीय रंगों की आवृृत्ति के बढ़़ते हुए क्रमशः लाल , नारंगी, पीला, हरा, आसमानी, नीला, आसामानी, बैगनी है ।
इसका मतलब साफ है कि सबसे स्पष्ट और सबसे ज्यादा लाल और सबसे कम स्पष्ट बैगनी दिखाई देगा। इसी वजह से आग में लाल व पीला रंग ज्यादा दिखाई देता है।
आग का रंग ?
आग 🔥 का रंंग लालीमा लिए हुए पीला ज्यादातर होता है। जिसमें लाल रंग सबसे बाहरी तरफ और पीला रंग लगभग बीच या अन्दर होता है। ऐसा क्यों होता है ? क्यों न लाल प्रकाश अन्दर और पीला बाहर होता। इन सभी उदाहरणों से यही स्पष्ट हो रहा है कि लाल सबसे कम ऊष्मा और श्वेत सबसे अधिक ऊष्मा का प्रतिक हैं और इसीलिए ये सभी इसी क्रम में ( लाल, नारंंगी , पीला, हरा, आसमानी, नीला और बैगनी ) होते हैं।
प्रकाश की ऊष्मीय ऊर्जा समान रूप से 360° डिग्री का कोण बनाते हुए हर संभव दिशााओं में संचरित होती है। इस प्रकार प्रकाशीय रंगों का का एक वृत्त बन जाता है जिसके सबसे बाहरी भाग में लाल रंग और सबसे आन्तरिक भाग में बैगनी होता है।
पर यह इतने पास - पास होतें हैं कि आँखें इनमें अन्तर नहीं कर पाती हैं पर जैसे ही ये प्रकाश किसी विचलन भरेे माध्यम से होकर गुजरतेे हैं तो इनके बीच की दूरी बढ़ जाती है और इनकी ऊष्मीय ऊर्जा में कमी भी हो जाती है। इसलिए हमें ये सातों रंग आसानी से दिखने लगते हैं।
यही कारण है कि ये सभी सातों प्रकाशीय रंग लाल, नारंगी, पीला, हरा, आसमानी, नीला और बैगनी को इस क्रम में रखा या लिखा जाता है।
इस तरह श्वेत (सफेद) प्रकाश की ऊष्मा इन सभी सातों रंगों से अधिक होती है या इन सभी के योग के लगभग बराबर होती है। क्योंकि हम जाानते हैं कि इन सातों प्रकाशीय रंगों से मिलकर ही श्वेत प्रकाश बना है।
प्रकाशीय रंगों का व्यवहारिक जीवन में उपयोग। (Use of optical colors in practical life. )
प्रकाशीय रंगों के निम्नलिखित ऊपयोग देखिए -
- श्वेत प्रकाश को ज्यादा समय तक देखने से हमारी आँखें और सर गर्म होता है।
- आँखों को जल्दी से ठँडा करने के लिए हमें काला / काली वस्तुओं को देखना चाहिए।
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सूर्य सुबह और शाम लाल क्यूँ दिखाई देता है ?
इन उदाहरणों को पढ़ने के बाद आपको क्या लगा या आपकी क्या राय है । अपने महत्वपूर्ण सुझाव हमसे जरुर शेयर करें। धन्यवाद !
Email : dkc4455@gmail.com
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2 टिप्पणियाँ
Good knowledge
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