ज्यादा बोलने से बने काम भी बिगड़ जाते हैं क्यों ?


  हते हैं कि ज्यादा बोलना हमारे लिए सही नहीं होता है , ज्यादा बोलने से काम बिगड़ जाते हैं ।  हम जिस भी काम के बारे में काम से ज्यादा बात करते हैं तो वह काम या तो होता नहीं या फिर जैसेे-तैसे ही हो पाता है। काम बिगड़ने के अनगिनत कारण हो सकते हैं पर इन सभी कारणों की उत्पत्ति ज्यादा बोलने से ही संभव होता है।
 ऐसा क्यों होता यह कोई नहीं जानता। है ना पर इस आर्टिकल में हम इसके बारे में कुछ ऐसे वैज्ञानिक और तार्किक उदाहरण देखेंगे जो बहुत हद तक इसके सवालों    से पर्दा हटा देगा। तो चलिए देर किस बात की जानते हैं यह जानकारी।









ऊर्जा न तो उत्पन्न की जा सकती और ना ही समाप्त ( Energy can not be generated nor ended ) 

    
    इस आर्टिकल को समझने के लिए यह नियम बहुत महत्वपूर्ण है। इसलिए इसको पहले जान लेते हैं। 
 इसे ऊर्जा संरक्षण का नियम कहते हैं। यह सर्वव्यापी नियम है यह हर स्थान, हर समय और हर प्रकार की वस्तुओं पर अनिवार्य रुप से लगता ही लगता है। इसके अनुसार अगर हम किसी भी वस्तु को ऊर्जा के रूप में बदले तो ठीक ऊतनी ही ऊर्जा मिलेगी जितनी की पहले वस्तु में थी। जैसे : अगर हम किसी वस्तु को जलाएँ तो इसकी ऊर्जा ( ऊष्मीय, प्रकाशीय, ध्वनि आदि ) कई रुपों में परिवर्तित हो सकती है पर कुल ऊर्जा नियत या एकसमान ही होगी। 
इससे यह पता चलता है हम जो भी बात बोलते उन सबकी ऊर्जा एक व्यक्ति से दूसरे और दूसरे से तिसरे व्यक्ति तक होते हुए हमेशा किसी ना किसी रूप में चलती रहती है पर समाप्त नहीं होती है । यही कारण है कि हम अपनी कही गई बातों में हमेशा फंसे रहते हैं क्योंकि बातें ऊर्जा हैं और ऊर्जा को समाप्त किया नहीं जा सकता है । और इस तरह से हमारी कही गई बातें ना जाने किस किस ऊर्जा में बदलती हुई एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में प्रवेश करती रहती है। 









 द्रव्यमान ऊर्जा का ही स्वरूप होता है । 

The mass of energy is the same form. 

       दुनियाँ में जो भी वस्तु है उसका कुछ न कुछ द्रव्यमान होता है। द्रव्यमान को ऊर्जा में परिवर्तित किया जा सकता है। जैसे किसी वस्तु को अगर जलाएँ तो उस वस्तु का द्रव्यमान मुख्यतः ऊष्मीय ऊर्जा में बदल जाता है। यह कोई परिकल्पना नहीं है बल्कि एक महान वैज्ञानिक की खोज है। 


   महान वैज्ञानिक आइन्स्टीन ने यह सिद्ध किया कि द्रव्यमान को ऊर्जा में बदला जा सकता है। क्योंकि द्रव्यमान ऊर्जा का दूसरा रुप है। उन्होंने इसका सूत्र भी दिया। 
E = mc2 

  जहाँ c = 3 × 108  मीटर / सेकण्ड. प्रकाश की चाल है। इस समीकरण को आइन्स्टीन का द्रव्यमान - ऊर्जा समीकरण कहते हैं। इस सूत्र से यह स्पष्ट हो रहा है कि किसी भी द्रव्यमान को पुरी तरह से ऊर्जा में बदलने के लिए ( अत्यधिक गति द्वारा ) 3 लाख किलोमीटर/सेकण्ड की चाल भी होना चाहिए। इतनी ज्यादा गति से लगभग हर प्रकार की वस्तुएँ अपने छोटे - छोटे टुकड़ों में बट जायेगी जो ऊष्मीय ऊर्जा के रूप में परिवर्तित होकर  संबंधित माध्यम विलीन हो जाते हैं और हमें दिखाई नहीं देते ।

  किसी  वस्तु को ऊर्जा में बदलने के लिए हमें बस उस वस्तु को किसी भी तरह से  उसके मूल कणों में बदलने की जरूरत होती है चाहे हम गति का उपयोग करते हुए करें या किसी अन्य तरिके से करें। 
इससे एक बहुत बड़ी बात सामने निकलकर आती है कि हमारा शरीर एक ऊर्जा ही है जो अपनी धीमी गति और शरीर कणों का एक साथ होने के कारण द्रव्यमान के रूप में दिखाई दे रहा है। इसका मतलब यह हुआ कि हम जो भी करते हैं या फिर सोचते हैं, बोलते हैं, सुनते हैं। ये सभी क्रियााएँ हमारे शरीर में ऊर्जा के रूप में ही कार्य को संपन्न होती हैं । और यही कारण है कि हम बोलना, सुनना, कहना, हवा का चलना आदि क्रियााओं देख नहीं सकते हैं क्योंकि ऊर्जा स्वयं दिखाई नहीं देती है लेकिन इससे होने वाली क्रियाओं को देखा या महसूस किया जा सकता है। अगर हम बिना कुछ खाये कोई भी काम करें तो हम दुबले - पतले हो जाते हैं। पता है क्यों क्योंकि हमारे शरीर का द्रव्यमान ऊर्जा में बदलने लगता है और हमारा वजन कम होने लगता है। अगर हम कोई काम ना भी करें सिर्फ चलें - फिरें, या बोलें तो भी हमें कुछ तो ऊर्जा चाहिए ही होगी।



ज्यादा बोलने से काम क्यों नहीं बनता ? 




   अब हम जाानते हैं कि हमारे  ( बढा़ चढ़ाकर ) बोले गये शब्द हमें कैसे असफलता देते हैं। हमने यह बात तो स्पष्टतः जान ली है कि हमारे शरीर में जो भी कुछ है या होता है, वो सब एक ऊर्जा है। तो इसका मतलब यह है कि हम जब कुछ करना चाहते हैं तो यह चाहत वाली ऊर्जा हमारे शरीर में प्रवेश कर जाती है पर जब हम इसी चाहत को अपने शब्दों में बयाँ करते हैं तो इस ऊर्जा में कमी होने लगती है। इस तरह हमारी यह चाहत कम हो जाती है और हम उस काम को या तो अच्छे से नहीं कर पाते हैं या कर ही नहीं पाते हैं। हमें उस काम को  सही से करने के लिए फिर से वही चाहत वाली ऊर्जा की जरुरत होती है। इसी बात को हम साधारण शब्दों में यह कहते हैं कि मेरा मन नहीं कर रहा है.. काम को करने का। हमारा मन किसी कार्य को करने को कहता है तो इसके पीछे एक इच्छा वाली ऊर्जा होती है जो मन को करने या उस वस्तु को पाने के लिए कहती है। पर जब हम इस इच्छा को शब्दों में बयाँ करते हैं तो यह ऊर्जा कम होने लगती है। लेकिन अब आप सोच रहे होंगे कि जब हम कुछ कहेंग ही नहीं तो कोई काम करेगें कैसे ? है ना !




   जिस प्रकार किसी भी वस्तु का एक सीमा ( लिमिट ) में हम उपयोग किया जाए तो वह सबसे उपयुक्त (  सही ) होता है। इसी प्रकार अगर हमारे मन में कोई इरादा / इच्छा है तो इसे ऐसे जगह पर प्रकट करना चाहिए जहाँ इसकी वाकई में जरूरत हो और हमें यही वाली ऊर्जा मिले यानी जहां हमें हमारे काम को समर्थन मिले ऐसी जगहों पर हमें अपनी बात रखनी चाहिए । बेवजह या बार - बार इसे सबके सामने न प्रकट करें क्योंकि ऐसा करने से आपकी यह इच्छा समाप्त होने लगेगी क्योंकि यह एक ऊर्जा है और इस इच्छा को प्रकट करने के लिए इसके ऊर्जा में कमी आ जायेगी। कमी आयेगी तो हमारे मन में इसका सीधा असर दिखाई देता है। जब इसकी ( इच्छा ) में कमी होगी तो वही काम अब करने को मन नहीं कहेगा।  पर इसका मतलब यह नहीं है कि इस इच्छा को बढ़ाया नहीं जा सकता है, बढ़ाय जा सकता है पर कैसे  ?


    ✴️ जानने के लिए निचे पढ़ते हैं.. 



 इच्छा वाली ऊर्जा को बरकरार कैसे रखें ? 

How to keep the energy you desire ?


          कोई भी इच्छा / मन का घटना - बढ़ना हमारे उपयोग पर निर्भर करता है। अगर कोई इच्छा घट रही है तो इसका मतलब यह है कि हम सिर्फ इस ऊर्जा का उपयोग तो कर रहे हैं पर इस ऊर्जा को बरकरार रखने के लिए कोई कार्य नहीं कर रहे हैं। जो इच्छा या चाहत हमारे अंदर है वो कहाँ से और कैसे आयी है यह पता करलो क्योंकि जब हमें इसकी जरूरत या कमी होगी तब हम यहाँ से इस ऊर्जा को लेकर अपनी इच्छा को फिर से बढा़ सकते हैं। जैसे हमें भुख लगती है तो हम खाना खा कर अपनी ऊर्जा बढा़ लेते हैं बिल्कुल ऐसे ही हमें अपनी मंजिल पाने के लिए अपनी जो भी अच्छी इच्छा या चाहत है उसे बार बार जगाना होगा या विज्ञान कि भाषा कहे तो में ऊर्जा की जरूरत होगी।


   अगर आप अपनी इच्छा को बहुत कम जाहिर करेगें तो भी उसे पुरा होने में कठिनाई आ सकती है। इसके निम्नलिखित कारण हो सकते हैं -

  • समय-समय पर इच्छाओं में बदलाव। 
  • किसी तीव्र इच्छा का उत्पन्न होना। 
  • इच्छा में कमी आना। 

इसलिए कहा गया है कि किसी भी काम को बिना उचित कारण कभी टालना नहीं चाहिए। 

   शायद इसीलिए बहुत से लोग अपने काम या इच्छा को बिना किसी को बताए ही करते हैं और वो सफल भी हो जाते हैं। पर कुछ काम ऐसे होते हैं जो बिना बताए किया भी नहीं जा सकता है। ऐसे काम को करना ही थोड़ा कठिन होता है। सबसे कठीन वह काम  होता है कि जिसे हम चैलेंज के साथ करने को कहते हैं। क्योंकि हम जब ऐसा कहते हैं तो उस समय हमारी भावना या इच्छा बहुत अधिक होती है और इसके चलते हम अपनी इस भावनात्मक ऊर्जा को अपने शब्दों द्वारा बाहरी वातावरण में जाने - अनजाने में ही कुछ ज्यादा ही व्यर्थ कर देते हैं। और जब यह ऊर्जा बाहर निकल जाती है तो हम शांत हो जाते हैं क्योंकि ऊर्जा में कमी आ जाती है और उस काम को करने के लिए मन नहीं करता है जिसे हम कह रहे थे। 


   हम सब इतना तो जानते ही हैं कि जो व्यक्ति जितना ज्यादा बोलता है वह उतना ही कम काम करता है और ऐसे व्यक्ति को हम अक्सर बड़ बोला, फेंकु, बहँसु आदि कहते हैं। इन सबके पिछे ऊपर के बताये गये कारण जिम्मेदार हो सकते हैं । 

    अधिकाशं लोग ऐसे भी होते हैं जो जान ही नहीं पाते हैं  कि असल में यह सब जो उनके साथ हो रहा है ये उनके गलत शब्दों या गलत जगह के बोलने के चलते हो रहा है। अगर साधारण शब्दों में कहा जाये तो लगभग 90% या इससे भी अधिक हमारे जीवन में गलत होने का कारण गलत जगह पर गलत शब्द को बोलना है। कुछ ऐसे ही शब्द देखते हैं कि ये भी ऊर्जा वाले कांसेप्ट फर खरा उतरता है कि नही। 








मैं यह काम जिंदगी में किसी भी कीमत पर नहीं करूँगा / करूँगी । 

I will never do this work in life.    




       जी हाँ अगर आप ऐसी कोई बात कहते हैं कि मैं यह काम तो किसी भी किमत पर और कभी नहीं करूँगा/ करूँगी तो यह बात आपका फ्लो ( पिछा करना ) करने   लगेगी  और   लगभग  90%  से  भी   ज्यादा संभावना है कि एक ना एक दिन वह काम आपसे करवाकर ही छोड़ेगी । दरअसल जब भी हम कोई ऐसी बात क्रोध, या घमंड से भरी ऊर्जा के साथ बोलते हैं वह ऊर्जा हमारे हाव - भाव तथा शब्दों के माध्यम से से हमारे शरीर के बाहर चली जाती है और हम ठीक इसके अगले ही पल क्रोध, गुस्सा से मुक्त हो जाते हैं। इस प्रकार की बातें हम जिससे कहेंगे उसको जरूर लगेगी ( उसके अंदर यह ऊर्जा  चली जायेगी ) और उस व्यक्ति के मन में विरोधाभास हो जाता है और यह ऊर्जा वह अपने पास रखना नहीं चाहेगा क्योंकि उसे यह ऊर्जा चुभेंगे जिसे जलन भी कहते हैं और जैसे ही मौका मिलेगा वह अपनी जलन को शांत करने के लिए उसे कुछ कहेगा या कुछ ऐसा करेगा जिससे इस जलन रुपी ऊर्जा को अपने अंदर से निकाल सके। तो इस तरह से भावनाएँ, चाहत या इच्छा एक स्थान से दूसरे स्थान तक ऊर्जा के रूप में आती - जाती हैं। 



 इसीलिए हमें कोई भी बात कहने से पहले एक बार जरूर सोचना चाहिए क्योंकि हम जो भी कुछ कहते हैं वो एक ऊर्जा होती है और यह ऊर्जा अपनी दिशा और दशा बदलती है पर समाप्त नहीं होती है, और इस बात से भी हमेशा बचने की कोशिश जरूर करें कि जब भी कोई बात कहें तो उसमें घमंड ना शामिल हो । क्योंकि अगर हम घमंड या क्रोध के साथ कोई भी बात करते हैं तो इस तरह की बातों में अत्यंत तीखी ऊर्जा होती है ( बिल्कुल सुई के समान चुभती है ) और इसी कारण से ऐसी बातें सुनते ही किसी को भी गुस्सा, क्रोध आ जाता है। जो आदमी ऐसी बातें सुनकर इस ऊर्जा को वापस नहीं करता है तो इसका मतलब यह है कि वह उस व्यक्ति को और क्रोधित नहीं करना चाहता है या उसके झगड़े में नहीं पड़ना चाहता है। लेकिन वह इस बात को सह नहीं सकता है और इस ऊर्जा को किसी अन्य के सामने जरुर निकालेगा या फिर खुद से बातें करके इस जलनरुपी ऊर्जा को व्यर्थ कर देगा। 







सीख : 1. ऐसी ऊर्जाओं का इस्तेमाल कर हम किसी बड़े काम को आसानी से करके जीवन में आगे बढ़ सकते हैं। 


2. कोई ऊर्जा बुरी नहीं होती है बल्कि हमारे उपयोग इन्हें अच्छा - बुरा बनाते हैं। 

इसलिए ऐसी ऊर्जा को व्यर्थ नहीं करना चाहिए। किसी अच्छे काम में इसका उपयोग करना चाहिए। ऐसा करने वाले ही आज उँची शक्शियत के मालिक हैं।




किसी काम को टालने वालो के लिए निचे अच्छी सीख है इसे भी पढ़कर हमसे अपने विचार जरुर शेयर करना। धन्यवाद... 




चलो यह काम कल तो हो ही जायेगा। 


क्या आप भी बहुत बार ऐसा कहते हैं तो आज से ही यह आदत सुधार लो क्योंकि ऐसे कामों का हो पाना लगभग मुश्किल हो जाता है । याद करिए आप सभी ने बहुत बार ऐसा जब कहा होगा तब वह काम किसी ना किसी वजह से जरूर रूक गया होगा। शायद इसीलिए यह कहा जाता है कि 

काल करे सो आज करे, आज करे सो अब, पल में परलय होगी बहुरी करेगा कब ।  "    

इसका मतलब साफ है कि हम अगर किसी काम को कल करने की बात करते हैं तो उसे आज ही कर लेना चाहिए ( अगर संभव हो तो  ) और जिस काम को हम आज करने की बात करते हैं उसे अभी के अभी करने की कोशिश करना चाहिए ।
दरअसल हम अगर कोई बात सोचते हैं या फिर कहते हैं कि यह... काम या वह... काम किसी अन्य समय में करेंगे तो क्या गारंटी है कि उस समय आप उस काम को करने के लिए आपके पास समय हो या फिर आप वहाँ हों जहाँ पर आपको काम था । यह भी तो हो सकता है कि आपको उसी समय कोई बड़ा और उससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण और जरूरी काम आ जाये जिस समय में आपने एक काम सोच रखा था ।
 दरअसल हम जो काम या बात सोचते हैं केवल उसी बात या काम की संभावना नहीं होती है बल्कि उसके अलावा भी बहुत कुछ होता है जो होने वाला होता है। 

इस बात को सही से समझने के लिए मान लिजिए किसी प्रतियोगिता में दो लोग शामिल हैं और एक - दूसरे के आमने सामने हैं । यदि पहला प्रतियोगी दूसरे प्रतियोगी से यह कहता है कि यह प्रतियोगिता तो मैं ही जितुँगा तो यह बात स्पष्ट है कि दूसरा प्रतियोगी पहले प्रतियोगी को हराने की पूरी कोशिश करेगा क्योंकि अब उसे खुली चुनौती ( open warning ) वाली ऊर्जा मिल गयी है जो उसके मान - सम्मान को ठेस और जलन पैदा कर देती है। वह इस ऊर्जा को बाहर निकालने के लिए बेचैैनी के साथ अधिकतम प्रयास करेगा। अगर पहला प्रतियोगी कुछ भी नहीं कहता तो शायद दूसरा प्रतियोगी इतने जूनून के साथ प्रतियोगिता में भाग नहीं लेता  और ना ही जीतता।  यहाँ पर दूसरा प्रतियोगी के जितने की संभावना और बढ़ जाती है क्योंकि वह अब प्रतियोगिता जितने के लिए जी जान लगा देगा।  इस कहानी से एक बात स्पष्ट हो रही है कि अगर आप कोई ऐसी बात कहते हैं जिसमें घमंड, किसी को निचा दिखाना, अतिरिक्त विश्वास (over confident) आदि हो तो ऐसी बातों में जलन या विरोध वााली ऊर्जा अत्यंत तीव्र और प्रभावी होती है। यही कारण है कि ऐसी बाातें सुुनकर हर व्यक्ति जलन और क्रोध का शिकार हो जाते हैं।
निचे दिए गए शब्दों को जितना हो सके मत बोलिए :


  • किसी बात, वस्तु, अपने गुणों आदि पर घमंड करना। 
  • कल तो यह ... काम कर ही लेंगे  ( ओवर कान्फिडेंट के साथ  ) 
  • मुझसे बड़ा चालाक कोई नहीं । 
  • कोई भी परेशानी हो ही नहीं सकती, हुई या होगी । 








क्या आप जानते हैं जो लोग अच्छे खासे अमीर होते हैं फिर भी ऐसी बातें करते हैं कि आप सुनोगे तो आपको यही लगेगा कि अरे यह तो अच्छा खासा धनी है फिर बातें ऐसे कर रहा है जैसे कि यह तो बहुत ही गरीब हो। ऐसे लोगों के अमीर होने की कुछ बातें इस प्रकार है - - 
  • ये लोग अपने आपको बड़ा - चढ़ाकर नहीं बताते हैं। 
  • ये लोग अपने काम को टालते नहीं। 
  • ये लोग अपने बारे में बहुत ही कम जानकारी देते हैं। 
  • ये लोग प्रायः कम बोलने वाले होते हैं ।
  • ऐसे लोग स्वार्थी भी होते हैं। 
  • ऐसे लोग फेंकु नहीं बल्कि बटेरूँ होतें हैं। 



 ये लोग ऐसा क्यों बोलते हैं और इनके ऐसा बोलने पर इनको क्या फायदा होता है, इसका जवाब आपको मिल गया होगा । अगर आप में भी यह आदत आ जाये तो आप या हम सब अमीर बनने की एक सीढ़ी ऊपर चढ़ जायेंगे। 




माता-पिता अपने बच्चों की बडा़ई.. नहीं करते.... 

बहुत लोग यह सोचते हैं कि मेरे माता-पिता  मेरी बडा़ई क्यों नहीं करते हैं जबकि मैं तो बहुत अच्छा काम करता हूँ। दरअसल हर माता - पिता  अपने की तारीफ तो खुलकर करना चाहते हैं पर उससे पहले ज्यादा जरूरी यह होता है कि उनके बच्चे पर किसी की बुरी नजर ना लगे। और सत्य यह है कि बडा़ई तब करना चाहिए जब आवश्यक हो बिना मतलब यानी किसी के सामने अपने या अपने बच्चों की सराहना करना भारी पड़ सकता है। क्योंकि बिना आवश्यक की सराहना करना घंमड के दायरे में आता है। यह बात तो हम सब जानते हैं कि घमंड बहुत ही बुरी बात है यह बड़े से बड़े गुण को  नष्ट कर देती है । इसलिए हमारे माता-पिता  हमारी प्रशंसा बहुत कम करते हैं । इस बात से बहुत से लोग अपने माता-पिता  को यह कहने लगते हैं कि इनको मेरा कोई मोल ( मान )  ही नहीं है और भला - बुरा भी कहने लगते हैं ।  आशा है कि यह जानकारी आप सभी के लिए उपयोगी होगी ।



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