अनंत क्या है ये बडी़ रोचक बात है | इसका शाब्दिक अर्थ "जिसका अन्त न हो है "|अगर बात करें गणित के संदर्भ मे तो अनंत को " १÷ ० " या " ∞" से व्यक्त करते हैं | कौन सी वस्तु अनंत हो सकती है और कब ? | ये सब बाते हम आपको बतायेंगे इसी आर्टिकमें |
अनंत क्या है ?
इस प्रश्न का उत्तर जानने से पहले आपकाे इसकी परिभाषा हम बताना जरूरी समझते हैं , क्योंकि हम जानते हैं कि किसी भी वस्तु की पुरी जानकारी तभी होती है जब उस वस्तु को 360° के कोण या हर एंगल(engle) से जाना जाये | इसीलिए तो हम कई तरह के उदाहरण प्रस्तुत किये हैं इस आर्टिकल में ,
परिभाषा : वह वस्तु जिसकि कोई सीमा या कहीं पे अंत न हो उसे अनंत कहते हैं।
दुसरे शब्दो में - अनंत वह वस्तु या प्रक्रिया है जो अंत को प्राप्त नहीं होती है | अनंत को 1 ÷ 0 या ∞ से व्यक्त किया जाता है , एक बात और हर एक वस्तु के दो पहलु होते हैं ,इसलिए अनंत का दुसरा पहलु " अन्त " हैं |
जैसे - संख्याओं : 1, 2 , 3 , 4 , 5 , 6 , 7 , 8 ......... ......... ........ ...... .....∞(अनंत ) तक
को क्रमवार (serialwise) लिखते जायें तो इसका कहीं भी अन्त नहीं मिलेगा | अत: यह एक अनंत संख्याओं का समूह बन जाता है , सो इसलिए यह एक अनंत श्रेणी हो जाती है | इस उदाहरण में 1 पर अन्त है अनंत की तरफ से जाने पर
ठीक इसी प्रकार यदि किसी गोले का चक्कर किया जाये और चक्करों की संख्या को न रोका जाये तो यह चक्करों की संख्या अनंत तक हो जायेगी या गोले पर अनंत चक्कर किया जा सकता है |
अब हम अनंत की व्याख्या करने जा रहे हैं जरा ध्यान से पढ़ें ताकि अच्छे से समझ में आ जाये |
अनंत की व्याख्या : अनंत की व्याख्या से मतलब यह है कि इसका कैसा गुण या क्या विशेषता से है | अनंत ऐसा मान है कि इसमें यदि कोई संख्या जोडी़ या घटाई जाये तो इसमे कोई फर्क नहीं पड़ता है ऐसा माना या कहा जाता है , मगर मैं आपको बता दूँ कि ये सत्य नहीं है और यही खासियत है मेरे ब्लाॉग/वेबसाईट की मैं कुछ अलग करता हूँ उतना जितना आवश्यक और सत्य हो |
अब हम आते हैं मैटर पे और जानते हैं क्या है हकिकत | माना किसी के पास एक करोड़ रूपये हैं अगर एक रुपये उसमे से निकाल दिया जायें तो अन्तर इतना मामुली होगा कि आभास ही नहीं होगा कि अन्तर है या नहीं परन्तु अन्तर तो हुआ है चाहे कम हो या ज्यादा | बिल्कुल इसी तरह अनंत में कोई संख्या यदि जोडी़ या घटाई जाये तो उसमे जरूर अंतर होगा चाहे बिल्कुल कम ही क्यों न हो | किसी भी संख्या को अनंत भागो मे विस्तार या तोडा़/बाँटा जा सकता है , जैसे - संख्या 1 की बात करें तो इसे भी अनंत भागों मे बाँटा जा सकता है , लेकिन इन अनंत भागों का योग 1 ही रहेगा , क्योंकि संख्या तो वही है बस उसको अनंत भागों में बाँटा गया है , लेकिन एक भी भाग या हिस्सा (1 का ) उसमे से निकाल दिया जाये तो 1 का मान पुरा नहीं होगा |
इसका एक साधारण - सा उदाहरण हम देखतें हैं -
अब इस श्रेणी को देखिए : 0.9 + 0.09 + 0.009 + 0.0009 + .............. अनंत तक = 0.999999.... ∞ अनंत तक , ये मान 1 में से ( 0.1 )×( 0.1 )× ( 0.1 )× ......∞
निकालने पर आता है | अतः अनंत में से कुछ भी घटाया या जोडा़ जाये तो अनंत में उसमें ज़रूर फर्क होता है |
यह एक गुणोत्तर श्रेणी है जिसका अनंतवा पद 0 होता है पर शून्य का कितना मान होता है ये बात भी शायद ही किसी को पता हो | ये जानकारी मैं जरुरत पड़ने पर ज़रूर उजागर करुँगा | क्या आपको पता है कि अनंत की भी श्रेणियाँ होती हैं ? इन सभी सवालो का जवाब है हमारे पास लेकिन हम इसे अगले आर्टिकल या लेख में हम बतायेंगे क्योंकि अभी हम केवल अनंत के बारे में आपको अवगत करा रहें हैं |
अगर आप अनंत के बारे में अच्छे से नहीं जानेंगे तो आप इसके बाद अनंत और शून्य कि विशेषता नहीं जान पायेंगे | इस तरह हम देखते हैं कि अनंत का हर वस्तु या संख्या से नाता है या कोई भी वस्तु अनंत को प्राप्त कर सकती है पर सभी के लिए अलग - अलग शर्तें होती हैं |
कहा जाता है कि ईश्वर निराकार , अजन्मा और अक्षय है , और यह भी माना जाता है की ईश्वर का पुर्ण वर्णन करना भी लगभग असंभव है |
अब हम ईश्वर की तुलना 0 ( शून्य ) और ... अनंत (1÷0 ) से करते हैं | जैसा कि हमने अभी - अभी उपर पढा़ है कि ईश्वर निराकार , अजन्मा और अक्षय है | ठीक उसी प्रकार शून्य ( 0 ) और अनंत ( 1÷0 ) भी निराकार और अक्षय हैं | अब आपको शायद यह बात नहीं समझ में आ रही होगी कि इसमें क्या समानता है तो हम आपको यही बताने जा रहे हैं | कृपया इसे अच्छे से पढे़ं >>
जिस प्रकार ईश्वर के आकार का निर्धारित नहीं किया जा सकता कि कितना है या हो सकता है उसी प्रकार अनंत का कोई प्रत्यक्ष निर्धारण भी नहीं किया जा सकता है |दरअसल शून्य और अनंत के बारे में किसी को पुरी जानकारी नहीं है और हो भी कैसे जिसकी विशेषता ईतनी जटिल हो तो भला कैसे कोई जान सकता है इनके
बारे में | आपको तो यह पता ही होगा कि जबसे संख्या शून्य का प्रयोग होना शुरू हुआ है तबसे लेकर आज तक दुनिया में नये - नये किर्तीमान बनाये जा रहे हैं |
शून्य के विशेष गुण का उपयोग किया जाये तो सोचो क्या कुछ नहीं हो सकता है |
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